हमारा भारत देश आज विकास के मामले मे अन्य विकसनशील देशो के मामले मे सबसे आगे है। लेकिन हम आज ये भुल गये है की, इस विकास मे महत्वपूर्ण योगदान पानी का है। आज हमारी नदिया जो पानी से भरकर रहती थी, वो आज मृत हो रही है। जल्द ही हमने आने वाले पानी के संकट के बारे मै विचार नही किया तो हमे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
कृषि और आजीविका:
हमे हमारे पुर्वजो ने सिखाया है "जल ही जीवन है"
हम हमारी नदियो को माता का दर्जा देते है। परंतु आज हमारी माता का अस्तित्व ही खतरे मे है। आज हमारी माता की सांस गंदगी, प्रदूषण से घुट रही है। ऐसे मे हमारा कर्तव्य है हमारी नदियों का संवर्धन करना। इस के लिए हम जलसाक्षर बनना होगा।
वृक्ष संवर्धन :
वृक्ष के बिना आप इस सृष्टि की कल्पना भी कर सकते। पेड़ अपनी जड़ों के माध्यम से वर्षा जल को अवशोषित करके और मिट्टी में रोककर पानी के बहाव को कम करते हैं। प्रत्येक पेड़ अपनी जड़ प्रणाली के माध्यम से भूजल को संतुलित करने में मदद करती है। प्रत्येक पेड़ अपनी जड प्रणाली की मदत से भुजल को संतुलित करने मे मदत करता है। यह प्रक्रिया भुजल को रिचार्ज मे मदत करती है और मिटी के कटाव को रोकती है।
पेड़ों की जड़ें मिट्टी के कणों को एक साथ बांधने में भी मदद करती हैं, जिससे एक स्थिर संरचना बनती है जो भारी बारीश के कारण मिट्टी को बहने से रोकती है। इसके अतिरिक्त, पेड़ों की गिरी हुई पत्तियाँ, टहनियाँ और शाखाएँ मिट्टी की सतह पर एक प्राकृतिक गीली घास की परत बनाती हैं, जो नमी बनाए रखने, वाष्पीकरण को रोकने और मिट्टी में पानी के प्रवेश को बढ़ावा देने में मदद करती है। यह भूजल भंडार को रिचार्ज करता है और मिट्टी की नमी के स्तर को बनाए रखता है, जो टिकाऊ जल प्रबंधन के लिए आवश्यक है।
समय आ गया है की हम वर्षा जल को ज्यादा से ज्यादा बचाने की कोशिश करे, क्यो की जल का कोई विकल्प नही है। अगर सही तरीके से पानी को बचाया गया और इसे बर्बाद होने से रोका गया तो इस समस्या का समाधान बेहत आसान हो जायेगा। मगर इसके लिये जरूरत है बस जागरुकता की जिसमे बच्चो से लेकर बडो तक पानी को बचाना सब अपना धर्म समझे।